भोपाल. वन विभाग ने सीधी वन मंडल के अंतर्गत वन-राजस्व सीमा विवाद में चुरहट न्यायालय में कमजोर पैरवी करने के मामले में एसडीओ विद्याभूषण मिश्रा को निलंबित कर दिया. जबकि इस विवाद में राज्य शासन ने सीधी डीएफओ क्षितिज कुमार को ओआईसी बनाया था. चूंकि प्रकरण के शुरुआत में डीएफओ की कमजोर पैरवी के चलते चुरहट की निचली अदालत के फैसले को जिला न्यायाधीश ने खारिज कर दिया और निचली अदालत को पुन: सुनवाई करने के निर्देश दिए. इसके बाद जब जिला न्यायाधीश के निर्देश पर अपील हाईकोर्ट जबलपुर में करने की बारी आई तब डीएफओ कुमार ने स्वयं को कार्रवाई से बचाने के लिए एसडीओ विद्याभूषण मिश्रा को ओआईसी बना दिया. एसडीओ विद्या भूषण ने एक पंचनामा डीएफओ को प्रस्तुत किया, जिससे यह साबित हो रहा था कि डीएफओ की कार्रवाई दुर्भावनावश की गई है.और बस यही पंचनामा उनके निलंबन का कारण बना.
यह प्रकरण बड़ा ही दिलचस्प है. डीएफओ ने अपनी गलत कार्रवाई को सही साबित करने के लिए यह पूरा प्रकरण अपने अंदाज से प्रस्तुत किया है. चुरहट रेंज के झूमर वन खंड के कक्ष क्रमांक- पी-992 के अंतर्गत फॉरेस्ट के मुनारों से बाहर बने कृष्णमणि तिवारी के मकान को फॉरेस्ट एरिया में बना बताकर डीएफओ ने पीओआर दर्ज किया. जबकि इसी भूमि पर बने मकान के संदर्भ में 1985-86 में निचली अदालत में तिवारी के पक्ष में फैसला दिया था. डीएफओ क्षितिज कुमार ने न्यायालय के पूर्व फैसले की अनदेखी करते हुए 2022 में दोबारा पीओआर काटकर अपराध पंजीबद किया. इसे लेकर चुरहट न्यायालय में सिविल सूट दायर किया गया. निचली अदालत वन विभाग के पक्ष में फैसला सुनाया. निचली अदालत के फैसले को लेकर कृष्ण मणि तिवारी ने जिला न्यायालय के समक्ष रिवीजन पिटिशन दायर किया. जिला न्यायालय ने सुनवाई करते हुए निचली अदालत को पुन: सुनवाई के निर्देश दिए.
जीपीएस रीडिंग और पंचनामे के तहत वन भूमि के बाहर है मकान
जिला न्यायालय के निर्देश के बाद सीसीएफ रीवा ने एसडीओ विद्याभूषण मिश्रा को मौका-मुआयना करने का फरमान जारी किया. 5 रेंजर और सरपंचों के साथ एसडीओ मिश्रा ने जीपीएस से रीडिंग कर पंचनामा तैयार किया जिसमें यह पाया कि कृष्णमणि तिवारी का मकान वन भूमि की मुनारो से 30-40 फीट दूरी पर बना है. ऐसी स्थिति में डीएफओ सीधी लगातार एसडीओ पर दबाव बना रहे थे कि हाई कोर्ट जबलपुर में अपील करें. यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि जबलपुर हाईकोर्ट में डीएफओ को शपथ दावा देना होता है. इस प्रक्रिया से बचने के लिए शासन के निर्देश की अवहेलना करते हुए एसडीओ मिश्रा को प्रकरण का ओआईसी बना दिया. डीएफओ के निर्देश पर मिश्रा हाईकोर्ट गए भी और शासन के महाधिवक्ता के समक्ष अपनी बात रखी. महाधिवक्ता ने लिखित तौर पर उन्हें बताया कि निचली अदालत में मामला लंबित है, इसलिए हाईकोर्ट में अपील नहीं की जा सकती. इसके बाद एसडीओ के खिलाफ डीएफओ ने शासन को गुमराह करते हुए रिपोर्ट भेजी और इस आधार पर उनका निलंबन कर दिया गया.
इनका कहना
फॉरेस्ट वन भूमि पर बने मकान को राजस्व भूमि पर बना बताने का पंचनामा गलत प्रस्तुत किया जिसके कारण उन्हें निलंबित किया गया.
राजेश राय, मुख्य वन संरक्षक रीवा
भोपाल से सीनियर अधिकारी को भेज कर जांच कर लिया जाए कि मेरा मकान फॉरेस्ट भूमि पर है अथवा उसके बाहर बना है? अपने आप स्थिति क्लियर हो जाएगी. डीएफओ ने जानबूझकर मेरे खिलाफ राग द्वेष की भावना से प्रकरण दर्ज किया है.
कृष्ण मणि तिवारी, झूमर गांव चुरहट