समृद्धि के नये द्वार खोलेगा अष्ट महालक्ष्मी मंदिर

Ashta Mahalaxmi Temple will open new doors of prosperity

  • जौरासी के आस-पास के इलाकों में तेजी से होगा विकास, तरक्की बढ़ने से जीवन होगा सुखद

 समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी सुख, संपत्ति और वैभव प्रदान करती हैं। माँ लक्ष्मी को धन, वैभव, संपत्ति, यश और कीर्ति की देवी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों एवं पुराणों में माँ लक्ष्मी के आठ स्वरूपों का वर्णन है, जिन्हें अष्ट महालक्ष्मी कहा जाता है। माँ के ये अष्ट स्वरूप अपने नाम और रूप के अनुसार समस्त दुःखों का नाश कर  सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। मान्यता है कि माँ लक्ष्मी की कृपा के बिना जीवन में समृद्धि और संपन्नता संभव नहीं है।

 डॉ. केशव पाण्डेय

सात मार्च गुरुवार का दिन आध्यात्मिक, धार्मिक एवं ग्रह-नक्षत्र की दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित होगा और भविष्य के लिए सुखद संकेत देने वाला रहेगा। कारण इस दिन प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के बाद श्री अष्ट महालक्ष्मी मंदिर के पट आमजन के लिए खुल जाएंगे। आम हो या खास सभी वैभव की देवी महालक्ष्मी के द्वार धन और समृद्धि की मनौती मांग सकेंगे। ग्वालियर जिले की डबरा तहसील के जौरासी में करीब 15 करोड़ की लागत से भव्य एवं विशाल श्री अष्ट महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण किया गया है। ट्रस्ट हनुमान मंदिर जौरासी द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया है। जिसका उद्देश्य शनि और सूर्य की युति के चलते शहर में उत्पन्न हो रहे वास्तुदोष को दूर करना है। 

श्री अष्ट महालक्ष्मी के अष्ट रूप यानी यह  आठ प्रकार के धन सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति में यह आठ धन अधिक या कम मात्रा में होते हैं। हम उन्हें कितना सम्मान करते हैं, उनका कैसे उपयोग करते हैं, हमारे ऊपर निर्भर है। इन आठ लक्ष्मी की अनुपस्थिति को-अष्ट दरीद्रता कहा जाता है। चाहे लक्ष्मी है या नहीं, नारायण को अभी भी अनुकूलित किया जा सकता है। नारायण दोनों के हैं – लक्ष्मी नारायण और दरिद्र नारायण! दरिद्र नारायण परोसा जाता है और लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। पूरे जीवन का प्रवाह दरिद्र नारायण से लक्ष्मी नारायण तक, दुख से समृद्धि तक, जीवन में सूखेपन से दैवीय अमृत तक जा रहा है। 

आदि, धन, धान्य, गज, संतान, वीर, जय और विद्या ये महालक्ष्मी के अष्ट रूप हैं। पहले इनके प्रत्येक रूप की महिमा को वर्णन करते हैं।  

 आदि लक्ष्मी = श्रीमद्भागवत पुराण में माँ लक्ष्मी का पहला स्वरूप कहा गया है। इन्हें मूल लक्ष्मी या महालक्ष्मी भी कहा गया है। मान्यता है कि आदि लक्ष्मी माँ ने ही सृष्टि की उत्पत्ति की है। भगवान विष्णु के साथ जगत का संचालन करती हैं। आदि लक्ष्मी की साधना से भक्त को जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 धन लक्ष्मी = माँ लक्ष्मी का दूसरा स्वरूप है। इनके एक हाथ में धन से भरा कलश है तो दूसरे में कमल का फूल है। धन लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक संकट दूर होता है। कर्ज से मुक्ति मिलती है। पुराणों के अनुसार माँ लक्ष्मी ने ये रूप भगवान विष्णु को कुबेर के कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिया था।

 धान्य लक्ष्मी = यह माँ का तीसरा रूप है। संसार में धान्य या अनाज के रूप में वास करती हैं। धान्य लक्ष्मी को माँ अन्नपूर्णा का ही एक रूप माना जाता है। 

 गज लक्ष्मी = चतुर्थ रूप में गज लक्ष्मी हाथी के ऊपर कमल के आसन पर विराजमान हैं। माँ गज लक्ष्मी को कृषि और उर्वरता की देवी के रूप में पूजा जाता है। इनकी आराधना से संतान की प्राप्ति होती है। राजा को समृद्धि प्रदान करने के कारण इन्हें “राज लक्ष्मी“ भी कहा जाता है।

 संतान लक्ष्मी = माँ के पंचम रूप को स्कंदमाता के रूप में भी जाना जाता है। इनके चार हाथ हैं तथा अपनी गोद में कुमार स्कंद को बालक रूप में लेकर बैठी हुई हैं। माना जाता है कि संतान लक्ष्मी भक्तों की रक्षा अपनी संतान के रूप में करती हैं।

 वीर लक्ष्मी = माँं लक्ष्मी का यह छठवां रूप भक्तों को वीरता, ओज और साहस प्रदान करता है। वीर लक्ष्मी माँ युद्ध में विजय दिलाती है। अपने हाथों में तलवार और ढाल जैसे अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं।

 जय लक्ष्मी =  माँ के इस रूप को विजय लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी साधना से भक्तों के जीवन के हर क्षेत्र में जय-विजय की प्राप्ति होती है। जय लक्ष्मी माँ यश, कीर्ति तथा सम्मान प्रदान करती हैं।

 विद्या लक्ष्मी माँ लक्ष्मी का यह आठवां रूप विद्या लक्ष्मी है। इनका रूप ब्रह्मचारिणी देवी के जैसा है। इनकी साधना से शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।

विश्व विख्यात श्री विद्या साधक एवं जन्म कुंडली विशेषज्ञ

श्रीजी रमण योगी महाराज “साइंटिस्ट बाबा” के मुताबिक नारायण लक्ष्य है और लक्ष्मी जी उन तक पहुँचने का एक साधन। उन्होंने आठ प्रकार के धन या अष्ट लक्ष्मी के बारे में विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि माता महालक्ष्मी की नजर जिस तरफ पड़ेगी उस क्षेत्र का विकास होगा। महालक्ष्मी देवी का आभा मंडल आस-पास के इलाकों में अपना प्रभाव छोड़ेगा। अष्टभुजाओं का प्रकाश टेकनपुर और डबरा में तीव्र गति से विकास कराकर समृद्धि के द्वार खोलेगा। कारोबार के  साथ ही पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। जिससे लोगों को रोजगार मिलेगा। आय बढ़ने से जीवन स्तर में बदलाव आएगा और सुखद होगा। 

पंडितों एवं त्योतिषाचार्यां की मानें तो ग्वालियर से 15 किलोमीटर दूर ऐंती पर्वत पर त्रेता युगीय शनि देव मंदिर है। कहा जाता है कि भगवान शनि देव उल्का पिंड के रूप में ऐंती पर्वत पर आए।

जबकि गोला का मंदिर इलाके में सूर्य मंदिर स्थित है।  शनि-सूर्य की युति एक साथ होने से लोगों के जीवन पर खासा प्रभाव होता है। दोनों ही जीवन को पूर्णतः संघर्षमय बनाते हैं। जब यह युति लग्न, पंचम, नवम या दशम भाव की स्थिति में हो या फिर  दोनों में से कोई भी एक ग्रह इन भावों का कारक भी हो तो यह योग जीवन में विलंब लाता है। बेहद मेहनत के बाद समय बीत जाने पर सफलता मिलती है। क्योंकि सूर्य और शनि दोनों पिता-पुत्र होने पर भी परस्पर शत्रुता रखते हैं। वेसे भी प्रकृति की मान्यता है कि ज्ञान और अंधकार साथ मिलने पर शुभ प्रभाव अनुभूत नहीं होते हैं। ऐसे में ग्वालियर शहर में तो यह युति एक लंबे समय से बनती चली आ रही है। इस वजह से शहर के विकास में काफी बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं। इतना ही नहीं शहर में वास्तु दोष भी बढ़ गए हैं। विभिन्न विकास कार्य रुक गए। शहर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली अनेक औद्योगिक इकाइयां भी शनै-शनै बंद हो गईं। ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि श्री अष्ट महालक्ष्मी मंदिर के निर्माण से निश्चित तौर पर जिले में सुखद वातावरण निर्मित होगा और वैभव की देवी महालक्ष्मी की कृपा से लोगों के जन-जीवन में बेहतर बदलाव आने की उम्मीद की जा सकती है। समृद्धि के द्वार खुलने से जिले की यश और कीर्ति बढ़ेगी।

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