Exclusive news: 82% of medical students from Kyrgyzstan fail in India
डिग्री होने के बाद भी नहीं कर सकेंगे प्रैक्टिस; 2 हजार ही कर पाए क्वालिफाई
विषेश संवाददाता
भोपाल। भारत से हर साल हजारों छात्र, रूस, यूक्रेन, किर्गिस्तान, फिलीपींस, चीन जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई करने जाते हैं। यहां पांच साल पढ़ाई करने के बाद MBBS की डिग्री तो हासिल कर लेते हैं, लेकिन भारत लौटने पर इनमें से केवल 18 से 20 फीसदी ही प्रैक्टिस कर पाते हैं।
दरअसल, दूसरे देशों से MBBS की डिग्री लेने वाले छात्रों के लिए फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन (FMGE) स्क्रीन टेस्ट पास करना जरूरी है, लेकिन फॉरेन से डिग्री हासिल करने वाले 80 फीसदी से ज्यादा छात्र इस एग्जाम को क्लियर ही नहीं कर पाते।
पहले जानिए मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश क्यों जाते हैं छात्र
भारत में सीटों की कम संख्या, खर्च ज्यादा
भारत में हर साल करीब 25 लाख छात्र NEET एग्जाम में शामिल होते हैं। यानी डॉक्टर बनने की इच्छा रखने वाले बच्चों की संख्या देश में मौजूद सीटों की संख्या से करीब 24 गुना है।
नर्सिंग और पैरामेडिकल कोर्स लें या फिर रूस, चीन, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान जैसे देशों में जाकर अपना सपना पूरा करें। ये देश ऐसे हजारों बच्चों का सपना पूरा कर देते हैं। स्टूडेंटों का कहना है कि भारत में मेडिकल की पढ़ाई काफी महंगी है।
यहां कोर्स पूरा करने में 60 लाख से 2 करोड़ रुपयों तक का खर्च आता है, लेकिन यूक्रेन, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान जैसे देशों में छह साल की पढ़ाई, रहने-खाने का पूरा खर्च 22 से 25 लाख रुपयों तक ही है। यह रकम भी कई किस्तों में अदा करने की सुविधा है।
अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया-कनाडा के संस्थानों में भी बहुत से विद्यार्थी जाते हैं, लेकिन वहां पढ़ाई और रहना दोनों महंगा है। ऐसे विद्यार्थियों की संख्या बेहद कम है। सबसे अधिक भीड़ चीन, रूस, यूक्रेन, बेलारूस, पोलैंड, किर्गिस्तान, सर्बिया, तजाकिस्तान, अर्मेनिया, अजरबैजान जैसे देशों में जाती है। यहां पढ़ाई और रहने का खर्च अपेक्षाकृत कम है।
स्टूडेंटों का कहते हैं । कि किर्गिस्तान जैसे देशों में एमबीबीएस में प्रवेश भारत की तरह कठिन नहीं है। वहां NEET जैसी परीक्षा नहीं होती, लेकिन 2021 के बाद बदले नियम से वहां की संस्थाओं में प्रवेश के लिए उन्हीं को अनुमति मिलती है जिन्होंने NEET परीक्षा को न्यूनतम अंकों से पास किया हो।
इस पासिंग मार्क के साथ विद्यार्थी संबंधित विश्वविद्यालय में आवेदन करता है। वहां एक सामान्य सी परीक्षा होती है, जिसे अधिकतर विद्यार्थी आसानी से पास कर लेते हैं। 10 दिन के भीतर प्रवेश की प्रक्रिया पूरी कर मेल पर प्रवेश पत्र आ जाता है।
नेशनल मेडिकल काउंसिल पहले विदेशी विश्वविद्यालयों की सूची जारी कर उनकी मान्यता तय करती थी। अब ऐसा नहीं है। अब वहां पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी होना ही अनिवार्य है। किर्गिस्तान में एमबीबीएस की पढ़ाई छह साल की है। इसमें पांच साल सैद्धांतिक पढ़ाई होती है और आखिरी का एक साल किसी अस्पताल में इंटर्न के तौर पर काम करते हुए बिताना पड़ता है।
विदेशों से डिग्री लेकर आए 80 फीसदी छात्र प्रैक्टिस नहीं कर पाते
एफएमजीई एग्जाम में विदेशों से डॉक्टरी करके आए छात्रों से तकनीकी सवाल पूछे जाते हैं। करीब 80% मेडिकल ग्रेजुएट यह परीक्षा पास ही नहीं कर पाते।
उदाहरण के लिए 2023 में देश भर में 61 हजार 216 लोग एफएमजीई स्क्रीनिंग परीक्षा में शामिल हुए थे। उनमें से केवल 10 हजार 261 यानी 16.65% लोग ही पास हो पाए।
किर्गिस्तान में एमपी के 1200 बच्चे फंसे हैं। मप्र सरकार ने उन्हें वहां से सुरक्षित बाहर निकालने का भरोसा दिया है। लेकिन, यहां रह रहे छात्र इस बात से नाराज है कि सरकार ने उन्हें वापस लाने के लिए कोई इंतजाम नहीं किए।