भारत में भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं, जोड़ों, मांसपेशियों एवं नसों (न्यूरो,मस्कुलोंस्केलेटन) से सम्बंधित दर्द समस्याओं के मरीज़

अलवर एसोसिएशन ऑफ फिजियोथैरेपी (राजस्थान) द्वारा आयोजित 2 दिवसीय (कार्यशाला) अलवर फिजियोकोन नेशनल कॉन्फ्रेंस में जुटे देशभर के 500 फिजियो थैरेपिस्ट।
आयोजन टीम के अध्यक्ष डॉक्टर सचिन अग्रवाल जो फिजियोथैरेपी विधा में पीएचडी एवं पोस्ट डॉक्टरेट फेलोशिप प्राप्त हैं, विगत कई वर्षों से गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं एवं उनके द्वारा दो फिजियोथेरेपी पर किताबें लिखी जा चूँकि है उनका कहना है कि बगैर फिजियोथैरेपिस्ट के आई,सी,यू, में मरीजों की देखभाल अधूरी है।

अलवर क्लीनिकल एडवाइजरी के सदस्यों का स्वागत किया गया, कार्यशाला में डॉ. वीरू महाकोल, डॉ जफर खान, डॉ सुविधा सूद, डॉ लोकेश लालवानी, डॉ सूर्यमणि, डॉ नेहा सैनी, डॉ अदिति सिंह, डॉ पुष्पेंद्र यदुवंशी और डॉ हर्षदीप ने स्पीकर के रूप में संबोधित किया।

डॉ.अग्रवाल ने दो दिवसीय अलवर नेशनल फिजियोकॉन कॉन्फ्रेंस में “मध्यप्रदेश” का प्रतिनिधि मंडल की तरफ़ से “भौतिक चिकित्सक कल्याण संघ” के अध्यक्ष डॉ. डॉक्टर सुनील पाण्डेय फिजियोथैरेपिस्ट एवं उनके फिजियो साथियों को आमंत्रित किया था डॉ. संजीव जैन गुना से डॉ. प्रशान्त तिवारी ग्वालियर से डॉ. राहुल खरे कटनी से डॉक्टर कुमैल जैदी दतिया से एवं डॉ. मुखर विश्वकर्मा नसरुल्लागंज (सीहोर) से बुलाया था सभी ने अपनी अपनी केस-स्टडी को पढ़ा लिग़ल साईंटफिक कमेटी के समक्ष एवं चेयरपर्सन का दायित्व सम्हाला।
डॉक्टर सुनील पाण्डेय ने क़मर दर्द पर (केश-स्टडी) पेपर प्रिजेंटेशन साइंडिफ कमेटी के सामने किया, बताया कि क़मर दर्द (लो बैकपेन) जिसे लम्बेगो भी कहा जाता है जो कि “निचली पसलियों के पीछे एवं लोवर मार्जिन ऑफ़ बटक कूल्हों के ऊपर होता है।
2017 इंडोमवॉनयी एंड ऑगबे जनलर में प्रकाशित ख़बर के अनुसार क़मर दर्द को तीन भागों में विभाजित किया गया है, लगभग 29 % एक्युट एक्युट दर्द, 10% प्रतिसत सब-एक्यूट एवं 61% क्रोनिक दर्द होता है। नेसबम 2010 प्रकाशित ख़बर के अनुसार 30 प्रतिसत यूनाइटेड स्टे्ट की (पोप्लेसन) जनसंख्या एवं 19 प्रतिसत ऐरोपियन संख्या क़मर दर्द से परेशान है।
वही यूनाइटेट स्टे्ट में दूसरा बड़ा कारण डिसियबेलटी का है, एवं 50 प्रतिसत ज्यादा जनसंख्या क़मर दर्द से परेशान।
भारत में भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं, जोड़ों की दर्द समस्याओं के मरीज़।

क़मर दर्द को मेडिकल साइंस ने दो मुख्य करणों में परिभाषित किया है, जिसे “प्राइमरी” और “सेकेंडरी” कहा जाता है।
“प्राइमरी”-
जैसे शरीरिक (स्ट्रेक्चर) न्युरो (तंत्रिका), मस्कुलोंस्केलेटन (हड्डी और मांसपेशियों) सम्बंधित (बीमारी) समस्याएं।
“सेकंडरी” जैसे-
एंजाइटी, डिप्रेशन, स्ट्रेस मानसिक तनाव, धूम्रपान, अत्यधिक शराब का सेवन व बिगड़ी हुई जीवनशैली (सेनेटरी लाइफ स्टाइल) से संबंधित, शारीरिक गतिविधि की कमी आदि भी पीठ दर्द का कारण बन सकता है। पीठ (क़मर) दर्द के कारण कई हो सकते हैं, इसलिए सही निदान और उपचार के लिए एक्सपर्ट फिजियोथैरेपिस्ट से परामर्श लेना चाहिए।

पूरे विश्व में बढ़ती उपयोगिता ड्रगलैस (भौतिक-चिकित्सा) फिजियोथैरेपी की।

भागदौड़ भरी जिंदगी बिगड़ती दिनचर्या (लाइफ़स्टाइल) व तनावग्रस्त जीवन एवं बदलते हुए मौसम (क्लाइमेंट) का असर सीधा मानव शरीर में बुरा प्रभाव डाल रहा है।
जिसकी देखरेख करना अति आवश्यक है मनुष्य के लिए, वर्तमान आधुनिक युग में बढ़ती हुई आधुनिक मशीनरी में निर्भरता मनुष्यों के लिए रोगों-बीमारियों का एक कारण भी है।

शारीरिक “मूवमेंट- फ्लेक्सिबिलिटी” (लचीलापन) की कमी से अनेकों प्रकार की शरीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
चूंकि मानव शरीर में “जोड़ों” का महत्वपूर्ण स्थान है, इन्हें सही तरीके से उपयोग में लाना हमारे शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। जोड़ों पर परेशानी मतलब मानव शरीर का संतुलन बिगड़ जाना, दर्द शुरु होते ही फिजियोथैरेपी (भौतिक चिकित्सा) इलाज अत्यंत कारगर सावित हो रहा है।
“वैज्ञानिकों’ ने शोध में पाया है महीनो तक दर्द से पीडित रोगी शरीरिक बीमारी के आलावा मानसिक रोगी भी बन जाता है, अर्थात आने वाले समय में गम्भीर बीमारियों का कारण बन सकता है। यदि समय रहते मरीजों को फिजियोथैरेपी चिकित्सा की जानकारी मिल जाए या विशेषज्ञ डॉक्टर दे देते हैं, तो मरीज को अनेकों दुष्प्रभावों से बचाया जा सकता है।

👉 आधुनिक युग के मनुष्यों के लिए फिजियोथैरेपी (भौतिक-चिकित्सा) संजीवनी बूटी से कम नहीं है। जोड़ों सम्बंधित समस्याओं पर इलाज़ की पहली प्राथमिकता-सलाह फिजियोथैरेपिस्ट (भौतिक-चिकित्सक) से लेना लाभदायक होगा। अनेकों प्रकार की बीमारियों में फिजियोथैरेपी इलाज़ का महत्वपूर्ण योगदान है।
इस चिकित्सा को भी जरूरतमंद मरीजों तक सुगमता से पहुँचना चाहिए ये स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है।

नोट-
दवाइयां भी तभी अपना पूरा कार्य करती हैं जब शरीर मूवमेंट (गतिशील) होता है।इस भागदौड़ भरी जिंदगी में “व्यायाम-एक्सरसाइज” को जीवन का एक हिस्सा बनाना अतिआवश्यक है।

आधुनिक युग में भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण आदमी अपनी शरीर की देखभाल सही तरीके से नही कर पा रहा है।

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