नई दिल्ली.
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट उस जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें चुनाव आयोग द्वारा जारी दो आदेशों को चुनौती दी गई है। इस याचिका में चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें भारत में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में हर मतदान केंद्र पर मतदाताओं की संख्या बढ़ाई गई है। ये जनहित याचिका इंदु प्रकाश सिंह ने शीर्ष न्यायालय में दायर की है। दरअसल, चुनाव आयोग द्वारा अगस्त 2024 में दो नोटिफिकेशन जारी किया गया था। इस आदेश के अनुसार देश के प्रत्येक मतदान केंद्र पर वोटरों की संख्या 1200 से बढ़ाकर 1500 करने का आदेश दिया था। इसी आदेश को चुनौती देने के लिए शीर्ष न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई है।
याचिका में कही गई ये बात
इंदु प्रकाश सिंह के वकील अभिषेक सिंघवी ने इस जनहित याचिका को लेकर कहा कि प्रत्येक मतदान केंद्रों पर 1200 से 1500 मतदाताओं की संख्या बढ़ाने से वंचित समुदाय की मतदान में भागीदारी कर होने की संभावना है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब किसी भी बूथ पर मतदाताओं की संख्या ज्यादा होगी तो मतदान में ज्यादा वक्त लगेगा। वहीं, सिंघवी ने आगे कहा कि मतदान केंद्र पर लंबी कतारें और इंतजार वोटर्स के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है।
पीठ ने कही ये बात
याचिकाकर्ता के तर्क पर पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान करें और ईवीएम के इस्तेमाल से समय की बचत होती है। आयोग मतदान के समय को कम करने के लिए ज्यादा ईवीएम का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है।
आगामी चुनावों पर पड़ेगा असर
इस याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग के फैसले से बिहार और दिल्ली में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान मतदाताओं पर असर पड़ेगा। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी का कहना है कि एक वोट डालने में 1 सेकंड का समय लगता है और इसलिए एक ईवीएम के साथ एक मतदान केंद्र पर एक दिन में 660 से 490 लोग अपना वोट डाल सकते हैं। औसत मतदान प्रतिशत 65.70 प्रतिशत होने पर विचार करते हुए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि 1,000 मतदाताओं को स्वीकार करने के लिए तैयार एक मतदान केंद्र पर लगभग 650 मतदाता आते हैं।
जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि देश में ऐसे बूथ भी हैं जहां मतदाताओं का मतदान 85-90 प्रतिशत के बीच है। ऐसी स्थिति में, लगभग 20 प्रतिशत मतदाता या तो मतदान के घंटों के बाद कतार में खड़े रहेंगे या लंबे इंतजार के कारण अपने मताधिकार का प्रयोग करना छोड़ देंगे। प्रगतिशील गणराज्य या लोकतंत्र में दोनों में से कोई भी स्वीकार्य नहीं है।